Man re kahan firat baurana
Man re kahan firat baurana (“mind” where are you wandering). “mind” is used as a metaphor for oneself in this Bhajan.
मन रे कहाँ फिरत बौरानाअबहूँ सीख सिखावन मेरो, चोला भयो है पुरानामानुष जनम पदारथ पाए, भजत ना क्यों भगवानाअंत काल पामर पछ्तैहें, यमपुर जबहीं ठिकानाकियो करार भजन करिबे को, सो बात भूलनाकेश सफ़ेद भयो सब तेरो, पहुंचा यम परवानानारी नेह देह से छाड़ो, नैनन जोती झपलानाकुल परिवार बात नहीं पूछत कहत बात कटूलानाबहुत कमाई असोच भये है, ले ले धरात खजाना‘लक्ष्मीपति’ नर राम भजन बिनु, माटी मोल बिकानाAmbe aab uchit nahi deriAmbe aab uchit nahi deri
(Mother Goddess! Its already too late)
अम्बे आब उचित नहीं देरीमित्र बंधू सब टक-टक ताकय, नहीं सहाय अहि बेरीयोग यज्ञ जप कय नहीं सकलों, परलहूं कालक फेरीकेवल द्वन्द फंद मै फैस कय, पाप बटोरल ढेरीनाम उचारब दुस्तर भय गेल, कंठ लेल कफ घेरीएक उपाय सुझे ऐछ अम्बे, आहाँ नयन भैर हेरीशुध्ह भजन तुए हे जगदम्बे, देब बजाबथि भेड़ी‘लक्ष्मीपति ‘ करुणामयी अम्बे, बिसरहूँ चूक घनेरी.